तेरहवीं लोकसभा
भारत सदियों की पराधीनता के पश्चात् 15 अगस्त, 1947 ई. को स्वतंत्र हुआ। 26 जनवरी, 1950 के दिन भारत के नए गणराज्य का आरंभ हुआ और तब भारत अपने लंबे इतिहास में पहली बार एक आधुनिक संस्थागत ढाँचे के साथ पूर्ण संसदीय लोकतंत्र बना। हमने प्रतिनिधि संसदीय लोकतंत्र की प्रणाली अपनाई। प्रतिनिधि, संसदीय एवं लोकतंत्र हमारी राजनीतिक व्यवस्था के मूल तत्व हैं। भारतीय संसद राष्ट्रपति और दो सदनों – राज्य सभा और लोक सभी से मिलकर बनती है। राज्यसभा देश का स्थायी सदन है। यह अप्रत्यक्ष रूप से लोगों का प्रतिनिधित्व करती है। राज्य सभा के सदस्य की कार्य – अवधि छह वर्षों की है लेकिन एक-तिहाई सदस्य प्रत्येक दो वर्ष बाद सेवा निवृत हो जाते हैं। लोकसभा दूसरा सदन है। इसके सदस्यों को जनता प्रत्यक्ष रीति से चुनती है। इसके सदस्यों की कार्य-अवधि पाँच वर्ष होती है। प्रत्येक पाँच वर्ष पश्चात् इसके चुनाव होते हैं। लेकिन कभी-कभी इसका कार्यकाल बीच में ही समाप्त हो जाता है। उदाहरण के लिए बारहवीं लोकसभा कुल तेरह महीने ही चली। तब मध्यावधि चुनाव होते हैं।
12वीं लोकसभा में 11 अप्रैल 1999 तक भारतीय जनता पार्टी तथा उसके सहयोगी दलों को बहुमत प्राप्त था और 11 अप्रैल 1999 को लोकसभा में विश्वास मत का सरकार का प्रस्ताव 270 के मुकाबले 271 मतों अर्थात केवल एक मत के अंतर से गिर गया और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी सरकार का त्यागपत्र राष्ट्रपति को भेजा।। वैकल्पिक सरकार के निर्माण में विपक्षी दलों की असफलता के कारण राष्ट्रपति को मंत्रिमंडल की संस्तुति पर लोकसभा को भंग करना पड़ा और 13वीं लोकसभीा के चुनावों के लिए मार्ग प्रशस्त हो गया।
चुनाव आयोग ने 13 वीं लोकसभा के चुनावों की प्रक्रिया आरंभ कर दी। उसने पाँच चरणों में लोकसभा की 543 सीटों के चुनाव कराने की अधिसूचना जारी कर दी। ये चुनाव 5, 11, 18, 25 सितम्बर, 1999 तथा 3 अक्टूबर को संपन्न हुए। 13वीं लोकसभा के सदस्यों के चुनाव हेतु देश भर में 7.75 लाख मतदान केन्द्र बनाए गए तथा अर्द्धसैनिक बलों के अतिरिक्त 45 लाख व्यक्तियों को चुनाव ड्यूटी पर लगाया गया। इन चुनावों पर लगभग 900 करोड़ रुपए व्यय होने का अनुमान है।
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चुनाव के पश्चात् मतगणना प्रारंभ हुई और 543 में से 538 सीटों के लिए हुए चुनावों के सभी परिणाम 8 अक्टूबर, 1999 तक घोषित कर दिए गए। इन परिणामों में भारतीय जनता पार्टी लोकसभा में सबसे बड़े दल के रूप में उभर कर आई। उसे कुल घोषित परिणामों से 182 सीटें प्राप्त हुईं और उसके नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिला। उसके सहयोगी दलों में बीजू जनता दल को 10, डी.एम.के. को 12, इंडियन नेशनल लोकदल को 5, जनता दल (यू) को 20, एन.डी.एन. को 4, तृणमूल काँग्रेस को 8, हिमाचल विकास काँग्रेस को एक, मणिपुर काँग्रेस को एक, नेशनल कांफ्रेंस को 4, लोकतांत्रिक काँग्रेस को 2, पी.एम.के. को 5, शिरोमणि अकाली दल को 2, एम.जी.आर. अद्रमुक को एक, मिजोनेशनल फ्रंट को एक, सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट को एक और शिव सेना को 15 स्थान प्राप्त हुए। इसके अतिरिक्त तेलगुदेशम के 29 सांसद चुने गए, वे भी सरकार का बाहर से समर्थन कर रहे हैं। काँग्रेस को कुल 112 स्थान प्राप्त हुए। वह 13वीं लोकसभा में प्रमुख विपक्षी दल है।
चुनाव-परिणाम घोषित होने के पश्चात् 13वीं लोकसभा के गठन के लिए चुनाव आयोग ने 9 अक्टूबर 1999 को 538 निर्वाचित सांसदों के नामों की विधिवत अधिसूचना जारी कर दी और मुख्य चुनाव आयुक्त ने यह सूची राष्ट्रपति को सौंप दी। राष्ट्रपति ने लोकसभा में बहुमत प्राप्त राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के नेता श्री अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने के लिए विधिवत आमंत्रित किया। राष्ट्रपति ने उन्हें प्रधानमंत्री नियुक्त किया।
20 अक्टूबर, 1999 को 13वीं लोकसभा के नवनिर्वाचित सांसदों को शपथ दिलवाई गई। शपथ ग्रहण करने के पश्चात 13वीं लोकसभा के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष का चुनाव किया गया। 12वीं लोकसभा के अध्यक्ष जी.एम.सी. बालयोगी को सर्वसम्मति से 13वीं लोकसभा का अध्यक्ष चुना गया और पी.एम.सईद को उपाध्यक्ष चुना गया।
वर्तमान 13वीं लोकसभा का स्वरूप 12वीं लोकसभा से कुछ अलग है। बारहवीं लोकसभा में सत्ता पक्ष अल्पमत में था और विपक्ष बहुमत में। इसी कारण 12वीं लोकसभा अल्पकालीन रही। सत्तापक्ष के सहयोगी दलों ने ही सरकार के सामने अनेक समस्याएँ उत्पन्न कीं। सहयोगी दल द्वारा समर्थन वापस लेने पर ही सरकार का पतन हुआ और लोकसभा भंग हुई। 13वीं लोकसभा में काँग्रेस की श्रीमती सोनिया गांधी विपक्ष की नेता होंगी जबकि 12वीं लोकसभा में काँग्रेस के शरद पवार विपक्ष के नेता थे।
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20 वीं शताब्दी के अंतिम दशक में हुए तेरहवीं लोकसभा के चुनाव में भी संसद तक पहुँचने वाली महिलाएँ दस प्रतिशत का आँकड़ा भी पार नहीं कर पाई। हालांकि इस चुनाव में जीतने वाली महिलाओं की संख्या में मामूली वृद्धि संतोषजनक नहीं है। इस बार की लोकसभा में कुल 46 महिला सांसद होंगी। इसका कारण राजनीतिक दलों द्वारा महिलाओं को टिकट देना नहीं रहा है।
13 वीं लोकसभा में कुछ महत्वपूर्ण राजनीतिज्ञ दिखाई नहीं देंगे। इन राजनीतिज्ञों में डॉ. मनमोहन सिंह, श्रीमती सुषमा स्वराज, कृष्ण लाल शर्मा, बलराम जाखड़, चेतन चौहान, श्रीमती मीरा कुमार आदि सम्मिलित हैं। इसका कारण उनका चुनाव में हारना है। फिर भी 13वीं लोकसभा में कुछ चेहरे पुराने हैं तो कुछ एकदम नए।
तेरहवीं लोकसभा के चुनाव ने यह स्पष्ट संकेत दिया है कि मतदाता किसी दल या पार्टी का गुलाम नहीं है। यह सोच समझकर फैसला करता है, हालांकि राजनीतिक दल धर्म, जाति आदि के नाम पर उसे गुमराह करने का प्रयास करते हैं। मतदाता की सबसे बड़ी चिंता यह है कि उसकी समस्याओं का समाधान हो और जो भी पार्टी या प्रत्याशी जन समस्याओं के समाधान में जनता का साथ देगा और उसके बीच रहेगा उसे समर्थन भी मिलेगा और सहयोग भी।
आशा है कि तेरहवीं लोकसभा अपना पाँच वर्ष का कार्यकाल पूरा करेगी क्योंकि सत्तापक्ष को संसद में पूर्ण बहुमत प्राप्त है। विपक्ष इस स्थिति में नहीं है कि वह सरकार को गिरा सके। यदि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में सम्मिलित विभिन्न घटक उसका पूरी तरह से समर्थन करते रहे तो लोकसभा के भंग होने की संभावना नहीं, लेकिन यदि गठबंधन के दो-चार बड़े घटक दल समर्थन वापस ले लें तो 13वीं लोकसभा भंग होने के आसार उत्पन्न हो जाएंगे। इन शंकाओं के मध्य में भी आशा है कि लोकसभा और सरकार पूरे पाँच साल चलेगी। जनता भी बार-बार होने वाले चुनावों से परेशान हो चुकी है। वह चाहती है कि देश में राजनीतिक स्थिरता हो और देश में शांति स्थापित रहे ताकि देश की गरीब जनता चुनावों पर होने वाले विशाल खर्च से बच सके। चुनावों पर खर्च होने वाला धन विकास कार्यों में लगे। देश चहुमुखी प्रगति करे। जनता का जीवन-स्तर ऊपर उठे।
अत: तेहरवीं लोकसभा के सांसदों का दायित्व है कि वे अपने क्षुद्र व्यक्तिगत राजनीतिक स्वार्थों को त्यागकर देश हित के लिए, जनता की भलाई और कल्याण के लिए कार्य करें।
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