वर्तमान काल में विश्व में सर्वत्र मानवाधिकार की चर्चा सुनाई देती है, विशेषकर एशिया महाद्वीप के देशों में। कभी सुनने को मिलता है कि पाकिस्तान ने अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के समक्ष कश्मीर में मुसलमानों पर हो रहे अत्याचारों का मामला उठाने का असफल प्रयास किया तो कभी चीन में मानवाधिकारों के उल्लंघन की समस्या पर अमरीका द्वारा चिंता व्यक्त की जाती है। श्रीलंका में तमिलों द्वारा मानवाधिकार की सुरक्षा की माँग की जाती है तो कभी खालिस्तान समर्थकों द्वारा भारत में सिक्खों के मानवााधिकारों की रक्षा की माँग संयुक्त राष्ट्र के सामने प्रस्तुत की जाती है। परन्तु अधिकांश लोग मानवाधिकार और मानवाधिकार आयोग के सम्बन्ध में अनजान हैं। वास्तव में मानवााधिकार क्या है ? यह जानना समीचीन होगा।
आज विश्व मानव के समक्ष मानव अधिकार एक समस्या के रूप में विद्यमान है। मानव अपने अधिकारों की प्राप्ति के लिए विश्व स्तर पर प्रयत्नशील है और तरह-तरह से संघर्षरत है। मानव अधिकारों की प्राप्त करने के लिए संघर्ष का इतिहास अत्यन्त प्राचीन है। सन् 1215 का मैग्नाकार्टा, सन् 1679 का बंदी प्रत्यक्षीकरण अधिनियम, सन् 1689 का बिल ऑफ राइट्स, सन् 1776 में अमरीका की स्वतंत्रता का घोषणा पत्र, सन् 1789 में मानव अधिकार सम्बन्धी फ्रांस की घोषणा तथा सन् 1948 में संयुक्त राष्ट्र संघ की मानवाधिकारों की घोषणा इस परम्परा के महत्त्वपूर्ण कदम हैं।
व्यक्तियों के रूप में तथा समूह के रूप में मानव के तीन मुख्य तथा अन्तर्सम्बन्धित लक्ष्य रहे हैं – जीवन का अस्तित्व, भरण-पोषण व सुरक्षा। पर्यावरण की सुरक्षा तथा परिस्थिति की सन्तुलन अर्थात् ताजी वायु, पेय जल, स्वस्थ वातावरण आदि मानव के जीवित रहेने के लिए आवश्यक हैं। भरण-पोषण के लिए भोजन, वस्त्र, आवास, चिकित्सा, शिक्षा, रोजगार और यातायात आदि की आवश्यकता होती है। मानव की सुरक्षा के लिए उसके मौलिक अधिकारों की समाज व राज्य द्वारा मान्यता सुनिश्चित करना और उनका उपभोग करने के लिए सामाजिक एवं वैधानिक आश्वासन आवश्यक है।
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मानवाधिकार ऐसे अधिकार होते हैं जो प्रत्येक मानव को जन्मजात रूप से प्राप्त होते हैं और उसके जीवन के अभिन्न अंग होते हैं। ये अधिकार मानव जीवन और विकास के लिए आधारभूत होते हैं। ऐसे अधिकारों के उपभोग के लिए उचित सामाजिक दशाओं का होना अनिवार्य है। ये अधिकार मानव की मूलभूत भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। इन अधिकारों को प्रत्येक राज्य को अपने संविधान तथा कानूनों में सम्मिलित कर लेना चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 10 दिसम्बर, 1948 को सार्वभौमिक मानव अधिकारों का एक घोषणा-पत्र स्वीकार किया गया। इसको संयुक्त राष्ट्र संघ की महान उपलब्धि के रूप में जाना जाता है। इस घोषण-पत्र में एक प्रस्तावना और 30 अनुच्छेद हैं। इस घोषणा-पत्र में सभी मनुष्यों और सभी राष्ट्रों के लिए समान स्तर की उपलब्धि कहा तथा सभी राष्ट्रों से मानव अधिकारों तथा स्वतंत्रताओं को प्रभावी ढंग से लागू करने का आग्रह किया। घोषणा-पत्र में कहा गया कि “सभी मानव स्वतंत्र हैं तथा उनकी गरिमा अधिकार समान हैं।” इस मानवाधिकार घोषणा-पत्र के अनुसार नस्ल, रंग, लिंग, भाषा, धर्म, राजनीतिक या राष्ट्रीय अथवा सामाजिक उद्गम स्थान, विचारधारा, जन्म आदि से सम्बन्धित विचारधारा के बिना सभी प्रकार के अधिकारों तथा स्वतंत्रताअें का मानव अधिकारी है।
मानव-अधिकारों को दो श्रेणियों में बांटा गया है –
(1) नागरिक व राजनीतिक अधिकार
(2) आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक अधिकार।
पहले प्रकार के अधिकारों में जीवन, स्वतंत्रता, सुरक्षा का अधिकार, पराधीनता और दासता से मुक्ति का अधिकार, कानून के समक्ष समानता का अधिकार, आने-जाने, विचार अन्त:करण तथा धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार, मत रखने व व्यक्त करने का अधिकार, समुदाय बनाने और सभा करने का अधिकार, शासन में भाग लेने तथा सार्वजनिक सेवाओं में प्रवेश का अधिकार है। दूसरे प्रकार के अधिकारों में सामाजिक सुरक्षा, कार्य करने तथा समाज के सांस्कृतिक कार्यों में भाग लेने इत्यादि के अधिकार सम्मिलित हैं।
मानव अधिकारों के सम्बन्ध में जिन प्रश्नों पर संयुक्त राष्ट्र घोषणा-पत्र तथा प्रस्तावों को स्वीकार किया है और विश्व जनमत का निर्माण करना चाहा है। वे प्रकार हैं – नारी के अधिकार, बालक के अधिकार, आत्मनिर्णय का अधिकार, विकास का अधिकार, प्रत्येक प्रकार की धार्मिक सहिष्णुता समाप्त करने का अधिकार, तकनीकी एवं प्राविधिकी विकास से सम्बन्धित मानव अधिकार, प्रवासी कामगारों की सुरक्षा, उत्पीड़न तथा अन्य प्रकार के अमानवीय व्यवहारों से सुरक्षा, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा, मूल नागरिकों के प्रति भेदभाव दूर करने का अधिकार।
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इस प्रकार संयुक्त राष्ट्र संघ ने समस्त मानव-जाति को बिना किसी भेद-भाव के मूलभूत मानवीय अधिकार प्रदान किए हैं। और उनकाी देखभाल के लिए अन्तर्राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की स्थापना की है, जो समय-समय पर विश्व के विभिन्न राष्ट्रों में मानवाधिकारों की स्थिति पर निगरानी रखती है। यह आयोग विभिन्न संगठनों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन के रूप में प्रस्तुत मामलों की छान-बीन करती है। परन्तु इस आयोग को कोई कानूनी अधिकार प्राप्त नहीं है। यही कारण है कि समय-समय पर विश्व के अनेक भागों में मानवाधिकारों से खिलवाड़ होता रहता है।
एक ओर मानव अधिकारों का संघर्ष चर रहा है तो दूसरी ओर कुछ स्वार्थी मानवता विरोधी संगठनों ने इनका दुरुपयोग आरम्भ कर दिया है। ये संगठन धर्म, जाति, वर्ण आदि के आधार पर निर्मित हैं या कुछ समाज विरोधी तत्त्वों ने परस्पर मिलकर खड़ा किया है। ये लोग खुल्लम-खुल्ला मानवाधिकारों का उल्लघंन कर रहे हैं। जम्मू-कश्मीर, पंजाब, असम, बिहार में आतंकवादी संगठन अपने नापाक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए निर्दोष लोगों की हत्या करते हैं। अपहरण कर उनको बंधक बनाकर रखते हैं। सार्वजनिक सम्पत्ति स्कूल, कॉलेज, रेलवे स्टेशन, पुल आदि को नष्ट कर सामान्य जनता को शिक्षा आदि सुविधाओं से बंचित कर देते हैं। अपने संगठन को चलाने के लिए जबरन धन वसूली करते हैं और धन न देतने पर सरे आम हत्या कर देते हैं।
देश-विदेश में अनेक माफिया गिरोह सक्रिय हैं जिनके लिए किसी की जान लेना अत्यन्त सरल कार्य है। अपहरण करके फिरौती प्राप्त करना तो आज एक व्यवसाय बन गया है।
जब पुलिस ऐसे संगठनों के प्रति सख्त कार्रवाई करती है तो वे संगठन अल्पसंख्यक होने या धार्मिक संगठनों पर या जाति विशेष के संगठन होने के कारणों की दुहाई देते हैं। पंजाब के आतंकवादी जब सामान्य जनता के लोगों के मानवाधिकारों का हनन बंदूक की नोक पर कर रहे तब किसी ने मानवाधिकार आयोग के सक्षम यह मामला नहीं उठाया। जब पुलिस ने जनता को आतंक से मुक्ति दिलाने के लिए सख्त कदम उठाकर आतंकवाद को समाप्त किया तो अब मानवाधिकार आयोग पुलिस को मानवाधिकारों के उल्लंघन का दोषी ठहरा रही है। यही स्थिति जम्मू-कश्मीर की है। पाकिस्तान के संकेत पर भाड़े के विदेशी आतंकवादी हत्या, अपहरण, बलात्कार, आगजनी के द्वारा मानवाधिकारों का उल्लंघन करते हैं तो शोर नहीं मचता। सेना द्वारा कार्रवाई करने पर मानवाधिकारों की दुहाई देते हैं। यह सब मानव अधिकारों के दुरुपयोग के ही उदाहरण हैं।
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विश्व के अनेक भागों में आज भी असमानता, शोषण, उत्पीड़न बड़े पैमाने पर हो रहे हैा। हमारे पड़ोसी देश में तो स्त्रियों पर अनेक प्रतिबंध हैं। अफगानिस्तान में स्त्रियों की दशा दयनीय है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान में तो सरकारें ही मानवाधिकारों का हनन कर रही हैं। सत्य तो यह है कि विश्व का कोई भी देश या मानव समाज अभी तक मानवाधिकारों को पूर्ण रूप से क्रियान्वन व उपभोग का आदर्श प्रस्तुत नहीं कर सका है। विभिन्न सामाजिक व राजनीतिक पद्धतियों में विभिन्न कारणों से मानव अधिकारों से वंचित रखा गया है।
इसलिए सम्पूर्ण विश्व में ऐसी सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक परिस्थितियों का निर्माण करने की आवश्यकता है जिनमें मानव अधिकारों के उपभोग और उनकाी वैधानिक मान्यता स्वीकृत हो और उनकी सुरक्षा हो। इनके बिना मानव अधिकारों की सभी घोषणाएं केवल कागजी घोषणाएं होकर रह जाएंगी। वे कभी भी साकार रूप धारण नहीं कर पायेंगी।
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