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भारत की प्रथम महिला राष्‍ट्रपति : श्रीमती प्रतिभा पाटिल | First woman President of India: Mrs. Pratibha Patil

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     हमारा देश भारत एक महान् परम्‍पराओं वाला देश है। सृष्टि-विकास के आरम्‍भ से ही यहाँ पर नारी के प्रति आदर-सम्‍मान की पवित्र भावना रही है। तभी तो इस प्रकार की धारणाएँ और कहावतें बन सकीं कि ‘यत्र नार्यस्‍तु पूज्‍यन्‍ते, रमन्‍ते तत्र देवता’ अर्थात् जहाँ नारी का मान-सम्‍मान होता है, वहाँ देवता निवास करते हैं। इसी परंपरा को बनाए रखते हुए 21 जुलाई, 2007 का दिन इतिहास के पन्‍नों में जुड़ गया। इस दिन प्रतिभा देवीसिंह पाटिल देश की प्रथम महिला राष्‍ट्रपति चुनी गईं। 25 जुलाई, 2007 को उन्‍होंने देश के 13वें राष्‍ट्रपति के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ ली। इस पद को सुशोभित करने वाली एवं रायसीना हिल्‍स स्थित राष्‍ट्रपति भवन पहुँचने वाली वह देश की प्रथम महिला हैं।

 

     राष्‍ट्रपति पद की शपथ लेने के पश्‍चात् अपने पहले संबोधन में श्रीमती पाटिल ने देशवासियों से जातिवाद, संप्रदायवाद, आतंकवाद और उग्रवाद जैसी विघटनकारी एवं विध्‍वंसकारी शक्तियों के खिलाफ लड़ने के लिए एकजुट होने का आह्वान किया। उन्‍होंने संविधान की गरिमा बनाए रखने का भरोसा दिलाते हुए सभी देशवासियों के कल्‍याण के लिए काम करने की प्रतिबद्धता जताई। इसके साथ उन्‍होंने कहा हमारी कोशिश होनी चाहिए कि विकास का संपूर्ण लाभ पूरे समाज खासतौर पर कमजोर और उपेक्षित वर्गों को मिले। अपने इस संबोधन में 17वीं सदी के मराठी कवि और संत तुकाराम की उस सीख का भी जिक्र किया कि जो गरीब और शोषितों को अपना मित्र बनाता है वह साधु कहलाता है क्‍योंकि परमेश्‍वर हमेशा उसके साथ होता है। उन्‍होंने अपने संबोधन में महात्‍मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, मौलाना आजाद, सरोजनी नायडू और इंदिरा गांधी का भी जिक्र किया। श्रीमती पाटिल ने कहा कि जब वे अपने कर्तव्‍यों और उत्‍तरदायित्‍वों के बारे में सोचती हैं तो गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के विचारों से उन्‍हें प्रेरणा मिलती है। श्रीमती पाटिल ने अपने संबोधन में सामाजिक कुरीतियों, कन्‍या भ्रूण हत्‍या आदि को समाप्‍त करने का संकल्‍प लिया।

 

     श्रीमति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल का जन्‍म महाराष्‍ट्र के जलगाँव जिले में 19 दिसंबर 1934 को हुआ था। उनके पिता का नाम नारायण राव था। जलगाँव के मूलजी जैठा कालेज से एम.ए. और मुंबई के लॉ कालेज से कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्‍होंने जलगाँव में वकालत शुरू की। इस दौरान वह सामाजिक कार्यों से भी जुड़ी रहीं। वर्ष 1965 में उनकी शादी राजस्‍थान के सीकर जिले के देवीसिंह रणसिंह शेखावत से हुई। उनकी एक पुत्री तथा एक पुत्र है। कुछ दिनों के बाद उनका परिवार जलगाँव (महाराष्‍ट्र) जाकर बस गया।

 

श्रीमती पाटिल एक अनुभवी राजनेता और प्रशासक हैं। वर्ष 1962 से 1985 तक वह महाराष्‍ट्र विधानसभा की पाँच बार सदस्‍य रहीं। इस दौरान वर्ष 1967 से 1972 तक वह महाराष्‍ट्र सरकार में राज्‍यमंत्री और वर्ष 1972 से 1977 तक कैबिनेट मंत्री रही। उन्‍होंने कई महत्‍वपूर्ण मंत्रालयों का कार्यभार सँभाला। वर्ष 1979 से 1980 तक वह महाराष्‍ट्र विधानसभा में विपक्ष की नेता रहीं। श्रीमती पाटिल वर्ष 1985 में राज्‍यसभा के लिए चुनी गईं। वर्ष 1986 से 1988 तक वह राज्‍यसभा की उपसभापति भी रहीं। इस दौरान वह राज्‍यसभा की विशेषाधिकार समिति की अध्‍यक्ष और व्‍यापार सलाहकार समिति की सदस्‍या भी रहीं। वर्ष 1988 से 1990 तक श्रीमती पाटिल महाराष्‍ट्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्‍यक्षा रहीं। इसके बाद वर्ष 1991 में वह लोकसभा के लिए पहली बार चुनी गईं। आठ नवंबर 2004 को वह राजस्‍थान की पहली महिला राज्‍यपाल बनीं। श्रीमती पाटिल महाराष्‍ट्र के सहकारी आंदोलन से सक्रिय रूप से जुड़ी रहीं। मुंबई और नई दिल्‍ली में कामकाजी महिलाओं के लिए हॉस्‍टल स्‍थापित करवाने में उन्‍होंने महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके अलावा जलगाँव में ग्रामीण युवकों के लिए सहकारी बैंक और महाराष्‍ट्र में गरीब बच्‍चों के लिए स्‍कूल खोलने का श्रेय भी उन्‍हीं को जाता है। अपने कॉलेज के दिनों में वह खेलकूद में भी काफी सक्रिय रहीं और उन्‍होंने कालेज टूर्नामेंट में टेबिल टेनिस चैम्पियन ट्रॉफी जीती। श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल से देश को बहुत आशाएँ हैं। लोगों की उम्‍मीदों पर वह कितना खरा उतरती हैं यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन देन की प्रथम महिला राष्‍ट्रपति बनने का गौरव प्राप्‍त कर एक इतिहास तो रच ही दिया है।

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