हिन्दी आशुलिपि बुनियादी जानकारी (Hindi ShortHand Basic Information)

विद्यार्थियों से निवेदन

 

आवश्यक सामान-

 

लिखने के लिए एक बही-नुमा लंबी नोट बुक होनी चाहिए। इसकी लाइन कम-से-कम 1 सेंटीमीटर या 3/8 इंच की दूरी पर हों। उसका कागज न ज्यादा चिकना और न खुरदुरा ही होना चाहिए। लिखने के लिए अच्छी लचीली नीव वाला फाउंटेन पेन होना चाहिए अन्यथा किसी अच्छी पेंसिल से भी लिखा जा सकता है। पेंसिल न अधिक कड़ी और न अधिक नरम ही होनी चाहिए या शॉर्टहैंड लिखने की विशेष H.B. पेंसिल ठीक रहेगी।

 

दूसरी बात है इन चीज को विशेष विधि से काम में लाने की। लेखक को नोट-बुक को सामने लंबाकार रखकर बैठना चाहिए जिससे शरीर का बोझ दोनों हाथों पर ना पड़े। दाहिने हाथ से पेंसिल या कलम को पकड़ कर इस तरीके से कॉपी पर रखना चाहिए जिससे की केवल नीचे की दो अंगुलियां मात्र काफी से छूती रहें और कलाई या हाथ काफी से बराबर ऊपर रहे जिससे लिखने में सरलता हो और थकावट न मालूम हो। बाएं हाथ के अंगूठे और पहिली अंगुली से पृष्ठ का निचला बायां हिस्सा पकड़े रहे जिससे लिखते लिखते ज्योंही समय मिले और पेज का अंत हो चले त्योंही पन्ने को उलटने में सुविधा हो। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पेंसिल या कलम को जोर से दबाकर ना पकड़ा जाए क्योंकि ऐसा करने से हाथ जल्दी-जल्दी नहीं चलता और लिखने में रुकावट सी मालूम होती है।

 

अभ्यास-

 

अच्छे समान शीघ्र लिपि लेखक को केवल सहायता मात्र दे सकते हैं पर उनके अभ्यास की कमी को पूरा नहीं कर सकते। संकेत लिपि के वर्णाक्षर ही ऐसे सरल ढंग से निर्धारित किए गए हैं कि जितने समय में आप नागरी लिपि के ‘क’ अक्षर को लिखेंगे उतने ही समय में संकेत लिपि के ‘क’ अक्षर को कम से कम 4 बार लिख सकते हैं। आवश्यकता केवल अभ्यास की है। अभ्यास इतना पक्का होना चाहिए कि वक्ता के मुंह से शब्द के निकलते ही आप उसको लिख लें, जरा भी सोचना न पड़े। इसके लिए पहले-पहल आपको केवल वर्णाक्षरों का अभ्यास करना चाहिए, उलट-पुलट कर चाहे जिस तरह बोला जाए आप उसे आसानी से लिख सकें। इसके पश्चात आप पाठ के अंत में दिए हुए अभ्यासों को लिखें, पहले अलग-अलग कठिन शब्दों को और फिर मिलाकर इतनी बार लिखें कि बोले जाने पर सरलता से लिख लें। दो तीन बार तो धीरे-धीरे बोले जाने पर लिखें की वक्ता से आप तीन चार शब्द बराबर पीछे रहें जिससे आपको हाथ बढ़ाकर लिखने और वक्ता को पकड़ने का अभ्यास हो। अंत में बोलने वाले की गति आपके लिखने की गति से आठ 10 शब्द प्रति मिनट अधिक होना चाहिए जिससे आपको और भी तेज हाथ बढ़ाने का अभ्यास हो। यदि ऐसा करने में कुछ शब्द छूट जाए तो कोई हर्ज नहीं, आप लिखते जाएं और बता को पकड़ने का प्रयत्न करते जाएं। नया पाठ लिखने पर जो नए शब्द या वाक्यांश आदि आवे उन्हें कई बार लिखकर ऐसा अभ्यास कर लें कि उन्हें लिखते समय आप ही आप शब्द हाथ से निकलने लगे, सोचना न पड़े।

 

दूसरी बात यह है कि आप कुछ अभ्यास प्रतिदिन जहां तक हो सके एक निश्चित समय पर करें। ऐसा अभ्यास उस अभ्यास से अधिक लाभप्रद होता है जो अभ्यास बीच-बीच में अंतर देकर किया जाता है चाहे वह अभ्यास अधिक ही समय तक क्यों ना किया जाए।

 

इस संकेत लिपि के लिए यह परमावश्यक है कि एकाध बार स्वयं लिखकर किया जाए, अधिकतर किसी अच्छे जानकार के बोले जाने पर ही लिखा जाए साथ ही साथ सभाओं, परिषदों और मीटिंगों में जा जाकर बैठा जाए और वक्ताओं की वक्तृतायें सुनी तथा समझी जाए क्योंकि लिखने के साथ ही साथ कानों का साधना भी बहुत ही आवश्यक है जिससे सुनी हुई बात फौरन ही समझ में आ सके। इसके पश्चात ही सभाओं में बैठकर बेधड़क लिखने की योग्यता आ सकती है। घबराना जरा भी न चाहिए क्योंकि घबराने से सब काम बिगड़ जाता है और आप में लिखने की शक्ति रहते हुए भी आप कुछ न लिख सकेंगे।

 

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