हिन्दी आशुलिपि वर्णमाला (व्यंजन) | Hindi shorthand alphabet (consonants)

वर्णाक्षरों की पहचान

 

नोट:- ऊपर पृष्‍ठ पर दिये हुये चित्र में तीर का निशान लगाकर यह बताया गया है कि कौन रेखा कहाँ से आरम्‍भ होती है और किस ओर जाती है।

 

     जो रेखायें नीचे और ऊपर दोनों ओर जाती हैं उनमें जो रेखायें नीचे आती हैं उनके नीचे (नी) और जो नीचे से ऊपर जाती हैं उनके (ऊ) लिख दिया गया है।

 

      1. चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग र (नी), ल (नी), स, ह (नी), ड़ (नी) और ढ़ (नी) – ये नीचे आने वाली रेखायें हैं।
      2. य, र (ऊ), ल (ऊ), व, ह (ऊ), ड़ (ऊ) और ढ़ (ऊ) – ये ऊपर जाने वाली रेखायें हैं।
      3. कवर्ग, म, न और ङ – आड़ी रेखायें हैं।
      4. ल नीचे से ऊपर और ऊपर से नीचे दोनों तरफ एक ही प्रकार से लिखा जाता है।
      5. कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग और पवर्ग के अक्षर य, र (ऊ), व, ह, ड़ (ऊ) और ढ़ – ये सरल रेखायें हैं।
      6. तवर्ग, र (नी), ल, स, म, न, ड़ (नी) और ङ – ये वक्र रेखायें हैं।
      7. कवर्ग के अक्षर – ये सरल और आड़ी रेखायें है।
      8. म, न और ङ – ये वक्र और आड़ी रेखायें है।
      9. बायें तरफ से लिखे जाने वाला तवर्ग और स, तवर्ग और स का बायाँ समूह कहा जाता है।
      10. दायें तरफ से लिखे जाने वाला तवर्ग और स, तवर्ग और स का दायाँ समूह कहा जाता है। वर्णमाला के चित्र में तवर्ग और स के संकेतों को देखो।

        (अ) तवर्ग समूह में पहला संकेत ‘त’ बायें समूह का है और दूसरा संकेत दायें समूह का है। इसी तरह थ, द और ध भी है।

                     (ब) ‘स’ का पहला अक्षर दायें समूह का है और दूसरा अक्षर बायें समूह का है।

 

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संकेत लिपि

 

जिन ध्‍वनि संकेतों द्वारा हम अपने विचार प्रकट करते हैं उसे भाषा कहते है। इनको सुनने के पश्‍चात जिन संकेतों द्वारा हम इनको लिखते हैं उसे लिपि कहते हैं। सुनकर समझने और उसे लिखने में बड़ा अन्‍तर होता है। जितनी जल्‍दी हम सुन सकते हैं उतनी जल्‍दी उन्‍हें हम अपने वर्तमान लिपि में लिख नहीं सकते। इसीलिए यह आवश्‍यकता प्रतीत हुई कि कोई ऐसा उपाय ढूँढ़ना चाहिये जिससे जितनी जल्‍दी हम सुनते हैं उतनी ही जल्‍दी हम लिख भी सकें। इस नई लिपि को ‘हिन्‍दी की शीघ्र लिपि’, ‘त्‍वरा लिपि’ अथवा ‘संकेत लिपि’ कहते हैं।

 

वर्णमाला

 

वर्णमाला भाषा, वाक्‍य और शब्‍दों के समूह से बनी है जो अपना विशेष अर्थ रखती है। शब्‍द, सुविधानुसार स्‍वर और व्‍यंजनों में विभक्त किये गये हैं। हिंदी की संकेत-लिपि की रचना भी इन्‍हीं स्‍वर और व्‍यंजनों की ध्‍वनि के सहारे की गई है जिन्‍हें विशेष चिन्‍हों से सूचित किया गया है। पर जो सज्‍जन हिन्‍दी भाषा और उसके व्‍याकरण के अच्‍छे ज्ञाता नहीं हैं उनके लिये इस लिपि का सीखना यदि असम्‍भव नहीं तो कठिन अवश्‍य है।

 

व्‍यंजन

 

इस संक्षिप्‍त लिपि के व्‍यंजनों की रचना अधिकतर ज्‍योमिति की सरल रेखाओं को लेकर की गई है। पर जब सरल रेखाओं से काम नहीं चला तब वक्र रेखाओं का सहारा लिया गया है।

 

 

 

याद करने के लिये नीचे से चलना चाहिये। प्रथम चित्र में पहली रेखा से कवर्ग, दूसरी रेखा से चवर्ग, तीसरी रेखा से टवर्ग और चौथी रेखा से पवर्ग सूचित किया गया है। तवर्ग सरल रेखा से न मानकर वक्र रेखा से माना गया है। इसका कारण यह है कि हम अंग्रेजी शार्ट हैण्‍ड (पीटमैन्‍स प्रणाली) के ध्‍वनि संकेतों को भी जहाँ तक हो सका है साथ लेकर चले हैं जिससे कि अंग्रजी के पिटमैन्‍स प्रणाली का जानने वाला यदि हिन्‍दी-शार्ट-हैंड सीखना चाहे तो उलझन में न पड़े। अंग्रजी में ‘पी’ को ‘प’ की रेखा से सूचित किया गया है, इसलिये हमने इस ‘प’ को क, च, त, म या न मानना उचित नहीं समझा यद्यपि ऐसा करना बहुत ही सरल था।

 

तवर्ग और स के लिये दायें और बायें दोनों तरफ से एक ही प्रकार की वक्र रेखा ली गई है। जैसा नीचे चित्र 1 और 2 में दिये गये हैं। 

 

 

 

श और स में इसलिये भेद नहीं किया गया कि मुहावरे से पता लग जाता है कि कहाँ पर स की आवश्‍यकता है और कहाँ पर श की। पर यदि कहीं पर विशेष भेद करना हो तो स के चिन्‍ह को काटने से श पढ़ा जायगा।

 

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     आज की हिन्‍दुस्‍तानी भाषा में उर्दू शब्‍दों की बहुलता अर्थात् उर्दू और फारसी शब्‍दों के प्रयोगाधिक्‍य के कारण ज़ का उपयोग भी अधिक होता है। जैसे सज़ा, मर्ज़ी आदि शब्‍दों में। वहाँ पर इसी बायें और दायें ‘स’ के संकेत को सुविधानुसार मोटा कर लेना चाहिये।

 

‘ष’ का उच्‍चरण या तो ‘ख’ होता है या ‘श’ और इन दोनों अक्षरों के लिये संकेत निर्धारित किये जा चुके हैं। इसलिये ‘ष’ के लिये स्‍वतंत्र रूप से कोई दूसरा संकेत निर्धारित नहीं किया गया है।

 

संकेत लिपि में चिन्‍हों द्वारा ही लिखा जाता है अत: उनका अनुवाद करते समय भाषा का शुद्ध रूप ही लिखा जाता है।

 

शेष फुटकर वर्णाक्षर अलग-अलग रेखाओं से निर्धारित किये जाते हैं पाठकों को इनका भली-भाँति लिखकर अभ्‍यास कर लेना चाहिये ताकि संकेत सुचारु रूप से बनने लगे।

 

     बायें और दाहिने संकेत सुचारुता के विचार से दिये गये हैं। कहां किसको लिखना चाहिये यह आगे समझाया जायगा।

 

तीर का निशान लगाकर यह पहले ही बताया जा चुका है कि कौन रेखा कहाँ से आरम्‍भ होती है और किस ओर जाती है। लिखते समय इस बात का विशेष-रूप से ध्‍यान रखना चाहिये कि जो रेखा जहाँ से आरम्‍भ होती है वहीं से आरम्‍भ की जाय और फिर ऊपर, नीचे या आड़ी-तिरछी जिस तरफ लिखी है उसी तरफ लिखी जाए।

 

इस लिपि को बड़ी सावधानी से खूब बनाकर लिखना चाहिये। यहाँ तक कि एक-एक वर्ण इतना लिखा जाय कि वह पुस्‍तक में दिये हुये वर्ण से मिलते-जुलते हों। इसमें जल्‍दी करने से लिपि कभी भी आगे चलकर फिर न सुधरेगी और परिणाम यह होगा कि इस तरह जल्‍दी-जल्‍दी लिखने वाले लेखक महाशय कभी भी कुशल हिन्‍दी शीघ्र लिपि (शार्ट-हैंड) के ज्ञाता न हो सकेंगे।

 

     विचार से देखिये तो वर्णमाला के पंचवर्गों के जितने अक्षर हैं उनका प्रथम अक्षर तो मूल अक्षर है पर उसके बाद का दूसरा अक्षर उसी मूल अक्षर में ‘ह’ लगा देने से बना है। उसी तरह तीसरा अक्षर मूल अक्षर है और चौथा अक्षर उसी में ‘ह’ लगा देने से बना है। जैसे कवर्ग का ‘क’ प्रथम अक्षर है और इसके बाद का अक्षर ‘ख’ क में ‘ह’ लगा कर बना है। च के बाद छ च + ह। ज के बाद झ = ज+ह आदि। इसलिये इन वर्णों के लिये एक ही संकेत रखे गये हैं लेकिन भिन्‍नता प्रकट करने के लिए मूल अक्षर काट दिये गये हैं। जैसे – क के संकेत को काटकर ख और प के संकेत को काटकर फ आदि बनाया गया है।

 

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तवर्ग और स, दायें तथा बायें और कुछ वर्ण संकेत ऊपर नीचे दोनों तरफ से लिखे गये हैं। उनका दोनों तरफ लिखने का अभ्‍यास करना चाहिये। यह इसलिये किया गया है की वर्णों को मिलानें में असुविधा न हो और लिपि के प्रवाह में अड़चन न पड़े। जैसे – (चित्र नीचे), न + ल पहले तरीके से लिखना सुविधाजनक है, दूसरे तरीके से लिखने में प्रवाह में रुकावट पड़ती है और संकेत भी शुद्ध और साफ नहीं बनते।

 

 

अभ्‍यास करते समय संकेतों की लम्‍बाई और मोटाई पर भी विशेष ध्‍यान रखना चाहिये। पाठकों को संकेतों की एक नियमित लम्‍बाई मानकर ही लिखना चाहिये। क्‍योंकि वह आगे चलकर देखेंगे कि किसी संकेत के नियमित रूप से छोटे या बड़े होने पर दूसरा अर्थ हो जायगा। संकेतों की नियमित लम्‍बाई करीब 3/10 इंच (लगभग 8 मि०मी०) की होनी चाहिये, पर पाठकगण अपनी सुविधानुसार कुछ छोटी-बड़ी कर सकते हैं, लेकिन संकेतों के रूप और बनावट में समानता होनी आवश्‍यक है।

 

च और र संकेतों को अच्‍छी तरह समझ लेना चाहिये। च ऊपर से नीचे और र नीचे से ऊपर को लिखा जाता है। झुकाव के विचार से च लम्‍ब से 35 अंश की दूरी पर नीचे की तरफ और र आधार की सरल रेखा से 35 अंश ऊपर की तरफ लिखा जाता है जैसे – नीचे दिेये गये चित्र में दर्शाया गया है।    

 

 

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अधिक जानने के लिए विडियो को देखें

 

पहला विडियो 

 

 

दूसरा विडियो 

 

 

 

तीसरा विडियो 

 

 

 

अपना अभ्‍याश करें

 

अभ्‍यास 1

 

 

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अभ्‍यास 2

 

 

अभ्‍यास 3

 

 

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अभ्‍याास 4 

 

 

 

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