स्वर
स्वर ध्वनि का उच्चारण बिना किसी दूसरे ध्वनि की सहायता के अपने ही आप हो सकता है। यहाँ स्वर दो प्रकार से लिखे जाते हैं। एक मोटे बिन्दु और मोटे डैश से और दूसरा हल्के बिन्दु और हल्के डेश से :-
मोटे बिन्दु और मोटे डैश से लिखे जाने वाले स्वर
उपरोक्त स्वरों को याद करने के लिये निम्न वाक्य याद कर लें। इनसे सहायता मिलेगी
अ रे री । मा चोर कूद (गया)
अ ए ई । आ ओ ऊ ×
1 2 3 । 1 2 3 ×
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उपरोक्त चिन्हों को ध्यान से देखने पर प्रतीत होगा कि एक ही चिन्ह से तीन-तीन स्वर या मात्रायें नियत की गई हैं परन्तु इस विचार से कि फिर भी वे अलग-अलग स्वरों का बोध करें उनके लिये अलग-अलग स्थान नियत किये गये हैं। एक ही चिन्ह, एक स्थान पर एक स्वर को, दूसरे स्थान पर दूसरे स्वर को और तीसरे स्थान पर तीसरे स्वर को सूचित करता है। इन्हें स्वर के स्थान कहते हैं। ये प्रथम, द्वितीय और तृतीय, तीन स्थान होते हैं। किसी रेखा के प्रारंभिक स्थान को प्रथम, बीच के स्थान को द्वितीय और अंत के स्थान को तृतीय स्थान कहते हैं। यह स्थान, जिस जगह से अक्षर लिखे जाते हैं, वहीं से आरम्भ होते हैं। ऊपर से नीचे लिखे जाने वाले अक्षरों के स्थान ऊपर से आरम्भ होते हैं। जैसे – नं० 1 चित्र नीचे
नीचे से ऊपर लिखें जाने वाले अक्षरों में स्थान नीचे से आरम्भ होते हैं। जैसे – नं० 2 चित्र में ऊपर
आड़े अक्षरों में स्वर या मात्रायें बाएँ से दायें की तरफ पढ़ी जाती हैं। जैसे – नं० 3 चित्र में ऊपर
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इन स्वरों को व्यंजनाक्षर के पास से लिखना चाहिये लेकिन इतना पास न लिखें कि अक्षरों में मिल जायँ।
ऊपर के छ: स्वर मोटे बिन्दु और मोटे डैश से सूचित किये गए हैं। डैश व्यंजन के पास किसी भी कोण में रखा जा सकता है। पर लम्बाकार अधिक सुविधाजनक और भला मालूम होता है। जैसे – चित्र नीचे
जब स्वर ऊपर जाने वाले या नीचे आने वाले व्यंजन के बाद रखा जाता है तो व्यंजन के पश्चात् पढ़ा जाता है। जैसे – चित्र नीचे
जब स्वर ऊपर जाने वाले या नीचे आने वाले व्यंजन के बाद रखा जाता है तो व्यंजन के पश्चात् पढ़ा जाता है। जैसे – चित्र नीचे
जब स्वर व्यंजन की आड़ी रेखा के ऊपर रखा जाता है तो पहले और जब नीचे रखा जाता है तब बाद में पढ़ा जाता है। जैसे – चित्र नीचे
मोटा बिन्दु प्रथम स्थान में अ, द्वितीय स्थान में ए और तृतीय स्थान में ई की ध्वनि देता है। जैसे – चित्र नीचे
अ की मोटी बिन्दु व्यंजन के बाद प्रथम स्थान में रखी जाती है क्योंकि अ की मात्रा व्यंजन में मिली रहती है।
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[नोट : जिस प्रकार मात्राओं अथवा स्वरों को लगाने के प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय स्थान नियत है उसी प्रकार मात्राओं तथा स्वरों को लोप कर उनके स्थानानुसार लाइन के ऊपर, लाइन पर तथा लाइन काट कर स्वरों को लगा हुआ मान कर लिखने का भी नियम है जो कि आगे आने वाली पोस्टों में “स्वर-लोप करने के नियम” के अंतर्गत विस्तृत रूप से समझाया जायेगा। आवश्यकतानुसार अवलोकन करें।]
इसी तरह मोटे डैश प्रथम स्थान में आ, द्वितीय स्थान में ओ और तृतीय स्थान में ऊ ध्वनि देते हैं। जैसे – चित्र नीचे
हल्के बिन्दु और हल्के डैश से लिखे जाने वाले स्वर
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आप छ: स्वर ऊपर पढ़ चुके हो। यहाँ छ: स्वर और दिये जाते हैं। पहले के स्वर मोटे बिन्दु और मोटे डैश से बने थे। अब यह छ: स्वर हल्के बिन्दु और हल्के डैश से बने हैं।
इन स्वरों का प्रयोग पहले छ: स्वरों के अनुसार ही होता है और इनके स्थान भी उन्हीं के अनुसार नियत किये गये हैं।
याद करने के लिए नीचे के वाक्य याद कर लो:-
ऐ औरत इस । साइत अंचल उलट
ऐ और इ । आइ अं उ
1 2 3 । 1 2 3
ऊपर के स्वरों को देखने से प्रतीत होगा कि ऋृ, अ: और लृ को कोई स्थान नहीं दिया गया है। संकेत-लिपि में इनकी कोई आवश्यकता नहीं पड़ेगी। बीच में अ: की मात्रा को जहाँ विद्यार्थीगण आवश्यक समझे तो अपने मन से लगा लें। जैसे – दु:ख। यह संकेत-लिपि में ‘दुख’ लिखा जाता है। पर यदि विद्यार्थीगण चाहें तो इसे ‘दु:ख’ पढ़े या लिखें। यदि विसर्ग अंत में आवे तो शब्द-संकेत के अंत में एक हल्का डैश लगाने से विसर्ग पढ़ा जायगा। ऋृ का काम ‘र’ से और लृ का काम ‘ल’ में ‘र’ लगाने से निकल जाता है।
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अनुस्वार ‘अ’ यदि व्यंजन के पहिले या बाद में अकेला आवे तो यथा विधि अपने द्वितीय स्थान पर रखा जायगा। जैसे – चित्र नीचे
यदि अनुस्वार व्यंजन के पहले या बाद में किसी स्वर के पश्चात् आवे तो उसी स्वर के स्थान पर एक हल्का शून्य रख देना चाहिए। जैसे – चित्र नीचे
[चन्द्र बिन्दु और अनुस्वार विद्यार्थीगण अपनी समझ से लगा लें।]
इससे यह मालूम होगा कि जहाँ पर यह शून्य रखा गया है उस स्थान पर सानुनासिक है। स्थान के विचार से स्वर को मालूम कर लेना चाहिए जैसे – आँत (ऊपर के चित्र में नं० 2 से सूचित किया शब्द) में चूँकि शून्य प्रथम में रखा गया है इसलिए इससे पता चलता है कि यहाँ कोई प्रथम स्थान का स्वर है। प्रथम स्थान के स्वर अ, आ, ऐ और आई होते हैं। सब स्वरों में अनुस्वार मिला कर पढ़ो। जिससे शब्द ठीक बनता है। अंत, ऐत, आइत ठीक शब्द नहीं बनते हैं। इसलिए आँत शब्द ठीक है। चूंकि अ के लिये पहले ही स्वतन्त्र स्थान निर्धारित किया जा चुका है। अंत: अंत न पढ़ा जा कर आँत ही शुद्ध पढ़ा जावेगा।
पर यदि आरम्भ में और स्पष्टता चाहो तो शून्य के नीचे उस स्थान की मात्रा भी लगा दो। जैसे – चित्र नीचे
सींच और पूँछ अपने नियम “व्यंजनों के बीच स्वर के स्थान” आगे पोस्ट के अनुसार दिए गये हैं।
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